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मैं मज़दूर हूँ….मज़बूर नहीं

मैं मज़दूर हूँ …. मज़बूर नहीं मैं मज़दूर हूँ मज़बूर नहीं...! ज़ीने का ज़ज़्बा हैं मुझमें ज़िंदा हूँ मैं ज़िंदा लाश नहीं...! ऊपर आसमान है नीचे तपती ज़मीन है मंज़िल है दूर लेकिन हौसला उससे बड़ा है...! कोई देता नहीं सब मांगते हैं यहाँ लक्ष्य दूर है लेकिन पैर भी तो साथ हैं...! नीयत साथ है और नियति को सलाम है...! यात्री भी हूँ मैं और अपनों का सारथी भी हूँ मैं...! झूठा है तेरा वादा गन्दा है तेरा इरादा कैसे भरोसा करूँ तुझ पर...! ज़रूरतें हैं मेरी कम जी लूँगा कहीं भी लेकिन यहाँ नहीं कभी नहीं...! इंसान हूँ मैं भी इंसानियत जीता हूँ...! मैं मज़दूर हूँ-मज़बूर नहीं…!  यह दर्द है उन मज़दूरों का जो देश में लाकडाउन के कारण अप्रैल - मई 2020 की तपती गर्मी में निकल पड़े हैं पैदल ही 1000-15000 की यात्रा पर अपने अपने गावों की ओर अपने परिवार और मासूम बच्चों के साथ I यह सोच कर ही रूह कांप जाती है ?  क्या अंतरिक्ष से ज़मीन पर कौआ और कबूतर देखने वाली सरकार को यह दिखाई नहीं दे रहा है ? जबकि मीडिया पर लाइव रिपोर्टिंग भी आ रही है I क्या लाखों करोड़ का NPA करने वाली सरक