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Showing posts from August, 2017

भ्रष्टाचार मुक्त भारत-I

"सामाजिक"    भ्रष्टाचार मुक्त भारत- I   भ्रष्टाचार, लम्बे समय से देश में एक मजबूत एवं मजबूरी का सियासी मुद्दा बना हुआ है । आमतौर पर भारत में भ्रष्टाचार को तीन मुख्य श्रेणियों में बाँट सकते हैं । पहली श्रेणी में वो भ्रष्टाचार आता है जिसमें आम जनता अपना काम करने के लिए पैसों का भुगतान करती है इसमें जनता प्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित रहती है दूसरी श्रेणी में वो भ्रष्टाचार आता है जो सरकारी विभाग अपने काम में करते हैं जिसमें शासन एवं प्रशासन के लोग संलघ्न रहते है इसमें आम जनता का प्रत्यक्ष तौर पर कोई सरोकार नहीं रहता है और तीसरी श्रेणी में वो भ्रष्टाचार आता है जो विदेशी मुल्कों से किसी भी प्रकार के लेन-देन से सम्बंधित होता है इसमें भी आम जनता का प्रत्यक्ष तौर पर कोई सरोकार नहीं रहता है । इसके अलावा देश में और भी तरह के भ्रष्टाचार होते हैं लेकिन हम उनकी चर्चा यहाँ नहीं करेंगें । प्रथम श्रेणी के भ्रष्टाचार में वो जगह आते हैं जहाँ रजिस्ट्रेशन होता है, अप्रूवल होता है, इनलिस्टमेन्ट होता है, लाइसेंसिंग जारी होता है, प्रमाण पत्र जारी होता है, वेरिफिकेशन होता है, प्रॉपर्टी रजिस्

पेट्रोल की महिमा

"कविता"   पेट्रोल की महिमा पेट्रोल की महिमा है अपरम्पार… सत्ता पक्ष को भाता है पेट्रोल विपक्ष का मुद्दा है पेट्रोल I डॉलर से है इसका याराना, बियर से है दोस्ताना पुराना I टमाटर, प्याज को है इससे प्यार, दोनों कुछ समय बिताते हैं साथ I अपने पर आ जाएँ ये दोनों अगर, तो सरकार गिरती है अपने आप I सब्जियां रहती हैं इसके आस-पास , दूध भी है इससे मिलने को बेकरार I ब्रेड-बटर भी इसके साथ आने को तैयार , और भी हैं इससे मिलने को तैयार I किसी को रुलाता है पेट्रोल, किसी को हंसाता है पेट्रोल I गरीब इससे परेशान है, अमीर इससे गतिमान है I मुहावरों में भी आता है पेट्रोल, जुमलों में भी जाता है पेट्रोल I पेट्रोल है नीचे आने को तैयार, सरकार है ऊपर भेजने को आमादा I क्योंकि सरकार का प्यारा है पेट्रोल, सरकार का सबसे दुलारा है पेट्रोल I इसके बिना अब गाड़ी चलती नहीं, पेट्रोल की महिमा है अपरम्पार..! #   Subhash Verma #   Feedback at loktantralive@hotmail.com

चुनावी राग की मार

"कविता"  चुनावी राग की मार चुनावी राग की मार है यारों, ये सुनती नहीं केवल धुनती है I सुना था बचपन में, जिसको चुनते हैं वही धुनते है   I सोचता था बचपन में कि, धुनना ही है तो चुनते ही क्यों है   I बड़ा हुआ तो पता चला कि, ये परंपरा तो सदियों पुरानी है   I चुनते हैं तो भी धुने जाते हैं, नहीं चुनते है तो भी धुने जाते हैं   I सच है चोली दामन का साथ है, चुनने का और धूनने का   I कहीं चुनना मज़बूरी भी है तो, चुनना कहीं ज़रूरी भी है   I धुनाई दोनों सूरत में है, धुनाई हर हाल में है   I चुनते रहना और धुनते रहना, यही हमारी नियति है   I स्कूल, हॉस्पिटल, चुना तो इसने भी धुना, नौकरी, मालिक चुना तो इसने भी धुना   I सामान, कंपनी, चुना तो इसने भी धुना, नेता, सरकार चुना तो इसने भी धुना   I सही कहा है किसी ने, हम चुनते रहेंगें वो धूनते रहेंगें   I चुनावी राग की मार है यारों, ये सुनती नहीं केवल धुनती है..! #   Subhash Verma #   Feedback at loktantralive@hotmail.com

हे लेखनी..!

हे लेखनी..!   हे लेखनी ध्यान देना तुम ख्याल रखना तुम..! लेखन पथ पर फिसल जाएँ तो संभाल लेना तुम..!  लेखन पथ पर गिर जाएँ अगर तो उठा लेना तुम..! लेखनी से कोई आहत न हो कोई बैरी न बन जाए  लोग जगें, जग जगे ऐसा प्रयास करना तुम..! सोये को जगाना तुम जगे को भी जगाना तुम  निष्पक्षता को बल देना निडरता को बरक़रार रखना झुकने न देना, मिटने न देना अहम न आने देना तुम..!  गतिमान रखना तुम अस्मिता पर कोई आंच ना आये इसका ख्याल रखना तुम..! आत्मविश्वास को बढ़ाना तुम अन्धविश्वास को भागना तुम..! सृजन को तर्कपूर्ण बनाना तुम सृजन को स्पष्ट रखना तुम..! लेखनी को धारदार रखना तुम कलम की धार को स्वस्थ रहना तुम..! हे लेखनी ध्यान देना तुम ख्याल रखना तुम...! लेखक एवं प्रस्तुति सुभाष वर्मा लेखक एवं पत्रकार www.loktantralive.in #   Feedback at loktantralive@hotmail.com