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ज़िन्दगी का मतलब

                 ज़िन्दगी का मतलब ज़िन्दगी में ज़िन्दगी का कीड़ा घुस गया जिज्ञासु मन व्याकुल हो चला   जानने को ज़िन्दगी का मतलब क्या है...! टीचर ने बताया ज़िन्दगी का मतलब पढ़ाई...! माँ ने बताया ज़िन्दगी का मतलब अच्छी सेहत ...! पिता ने बताया ज़िन्दगी का मतलब भविष्य बनाओ...! बड़ों ने बताया ज़िन्दगी का मतलब संघर्ष है...! बॉस ने बताया ज़िन्दगी का मतलब खूब काम करो...! बीबी ने बताया ज़िन्दगी का मतलब पैसे खूब लाओ...! बच्चों ने बताया ज़िन्दगी का मतलब हमें मौज़ कराओ...! पंडित ने बताया ज़िन्दगी का मतलब दान दक्षिणा देते रहो...! संगठन ने बताया ज़िन्दगी का मतलब सेवा करो...! बुद्धिजीवी ने बताया ज़िन्दगी का मतलब चिंतन एवं मंथन करो...!   कुछ अनुभवी लोगों ने बताया   ज़िन्दगी का मतलब सिसकना और घिसटना है...! दार्शनिक ने बताया ज़िन्दगी का मतलब भिखारी और आश्रित...! दोस्तों ने बताया यूं ज़िन्दगी बर्बाद मत करो जिन्

कुछ नहीं हो सकता

                        कुछ नहीं हो सकता जिस देश में कुछ भी हो सकता है उस देश का कुछ नहीं हो सकता ...! जिस देश में अनपढ़ शिक्षामंत्री हो बीमार स्वास्थ मंत्री हो अपराधी रक्षा मंत्री हो उस देश का कुछ नहीं हो सकता ...! जिस देश की जनता लोभी हो प्रशासन भ्रष्टाचारी हो नेता शातिर हो उस देश का कुछ नहीं हो सकता ...! जिस देश में रक्षक ही भक्षक हो मौत मंहगी हो ज़िन्दगी सस्ती हो सच पापी हो झूठ सच्चा हो उस देश का कुछ नहीं हो सकता...! जिस देश में शिक्षित मूर्खों की ज़मात हो अनुभवी मूर्खों की ज़मात हो आँख के अंधे हों उस देश का कुछ नहीं हो सकता...! जिस देश में सच पर झूठ भारी हो धर्म पर अधर्म भारी हो अपराध कोई और करे अपराधी कोई और हो उस देश का कुछ नहीं हो सकता...! जिस देश में अपना काम बनता भाड़ में जाए जनता की मानसिकता हो उस देश का कुछ नहीं हो सकता...! जिस देश में न्याय बिकाऊ हो   वोट बिकाऊ हो मीडिया बिकाऊ हो नेता बिकाऊ हो उस देश का कुछ नहीं हो सकता...! जिस देश में नेता बिक सकता है वह देश भी बिक सकता ह

ज़िन्दगी का रंग और स्वाद

ज़िन्दगी का रंग और स्वाद क्यों किया बुरा और पाप आज क्यों बोला झूठ आज किसके लिए किया यह सब आज क्या ली थी इज़ाज़त उनसे इसके लिए चलो चिंतन करो इस पर आज ज़िन्दगी का रंग और स्वाद बदलेगा आज..!   कितना अच्छा कितना बुरा किया आज कितना पुण्य कितना पाप किया आज कितना सच कितना झूठ बोला आज यदि चिंतन हो जाय इन पर आज विश्वास रखो अपने आप पर आज ज़िन्दगी का रंग और स्वाद बदलेगा आज..! क्या करें, क्यों करें, किसको कितना करें चलो थोड़ा चिंतन करो इस पर आज यदि चिंतन से कुछ सूत्र मिला है तो इस सूत्र पर मंथन करो आज विश्वास रखो अपने आप पर आज ज़िन्दगी का रंग और स्वाद बदलेगा आज..! क्या किया है और क्या कर रहे हैं चलो थोड़ा चिंतन करो इस पर आज यदि कुछ समझ आया है चिंतन से तो इस चिंतन पर मंथन करो आज विश्वास रखो अपने आप पर आज ज़िन्दगी का रंग और स्वाद बदलेगा आज..!   लेखक एवं प्रस्तुति सुभाष वर्मा लेखक एवं पत्रकार loktantralive@hotmail.com  www.loktantralive.in

मज़दूर हूँ….मज़बूर नहीं

मैं मज़दूर हूँ मज़बूर नहीं...! ज़ीने का ज़ज़्बा हैं मुझमें ज़िंदा हूँ मैं ज़िंदा लाश नहीं...! ऊपर आसमान है नीचे तपती ज़मीन है मंज़िल है दूर लेकिन हौसला उससे बड़ा है...! कोई देता नहीं सब मांगते हैं यहाँ लक्ष्य दूर है लेकिन पैर भी तो साथ हैं...! नीयत साथ है और नियति को सलाम है...! यात्री भी हूँ मैं और अपनों का सारथी भी हूँ मैं...! झूठा है तेरा वादा गन्दा है तेरा इरादा कैसे भरोसा करूँ तुझ पर...! ज़रूरतें हैं मेरी कम जी लूँगा कहीं भी लेकिन यहाँ नहीं कभी नहीं...! इंसान हूँ मैं भी इंसानियत जीता हूँ...! मैं मज़दूर हूँ-मज़बूर नहीं…! लेखक एवं प्रस्तुति सुभाष वर्मा लेखक एवं पत्रकार loktantralive@hotmail.com www.loktantralive.in

मैं मज़दूर हूँ….मज़बूर नहीं

मैं मज़दूर हूँ …. मज़बूर नहीं मैं मज़दूर हूँ मज़बूर नहीं...! ज़ीने का ज़ज़्बा हैं मुझमें ज़िंदा हूँ मैं ज़िंदा लाश नहीं...! ऊपर आसमान है नीचे तपती ज़मीन है मंज़िल है दूर लेकिन हौसला उससे बड़ा है...! कोई देता नहीं सब मांगते हैं यहाँ लक्ष्य दूर है लेकिन पैर भी तो साथ हैं...! नीयत साथ है और नियति को सलाम है...! यात्री भी हूँ मैं और अपनों का सारथी भी हूँ मैं...! झूठा है तेरा वादा गन्दा है तेरा इरादा कैसे भरोसा करूँ तुझ पर...! ज़रूरतें हैं मेरी कम जी लूँगा कहीं भी लेकिन यहाँ नहीं कभी नहीं...! इंसान हूँ मैं भी इंसानियत जीता हूँ...! मैं मज़दूर हूँ-मज़बूर नहीं…!  यह दर्द है उन मज़दूरों का जो देश में लाकडाउन के कारण अप्रैल - मई 2020 की तपती गर्मी में निकल पड़े हैं पैदल ही 1000-15000 की यात्रा पर अपने अपने गावों की ओर अपने परिवार और मासूम बच्चों के साथ I यह सोच कर ही रूह कांप जाती है ?  क्या अंतरिक्ष से ज़मीन पर कौआ और कबूतर देखने वाली सरकार को यह दिखाई नहीं दे रहा है ? जबकि मीडिया पर लाइव रिपोर्टिंग भी आ रही है I क्या लाखों करोड़ का NPA करने वाली सरक

2020 का अनोखा चुनाव (व्यंग)

जी हाँ फ़रवरी 2020 का दिल्ली विधान सभा चुनाव अपने आप में एक अनोखा ही नहीं अदभुत चुनाव साबित हुआ है । क्योंकि भारतीय लोकतंत्र में जहाँ तक मुझे याद है कि यह शायद पहला ऐसा चुनाव था जिसमें सभी पक्ष खुश और संतुष्ट दिखे । कुछ पार्टी समर्थकों से हमने इस चुनाव परिणामों के बारे में बात की जिसका निष्कर्ष यहाँ प्रस्तुत है :- आम आदमी पार्टी अपनी इस जीत को ऐतिहासिक बता रही है क्योंकि उसकी सरकार में वापसी हुई है । बेशक उसके सीटों की संख्या में कमी आ गयी है । क्योंकि उसको 67 के मुकाबले 62 सीटें ही प्राप्त हुई हैं । यकीन मानिये अगर वह 40 सीट भी जीत कर अपनी सरकार बना लेती तो भी वह इसको ऐतिहासिक ही बताती क्योंकि परिणामों को अपने पक्ष में बताना कोई नयी बात नहीं है और इसमें कोई बुराई भी नहीं है । आम आदमी पार्टी को इस ऐतिहासिक जीत की बधाई । भारतीय जनता पार्टी भी इस चुनाव परिणामों को अपनी ऐतिहासिक कामयाबी के तौर पर पेश कर रही है क्योंकि उसको 3 के मुकाबले 8 सीटों की प्राप्ति हुई है और विशेष बात यह है कि पहली बार उसको दिल्ली में अकाली दल के अलावा JDU और LJP जैसे दो सहयोगी मिल गए अर्थात एक की जगह

आज का नेता - ऑफ रिकार्ड (व्यंग)

( आज का नेता ऑफ रिकार्ड क्या सोचता है और क्या बोलता है यह हमने एक पत्रकार और नेता के वार्तालाप (सवाल-जवाब) को व्यंग के माध्यम से बताने का प्रयास किया है l किसी भी बात का या शब्दों का किसी से मिलना महज़ संजोग हो सकता है या माना जायेगा l किसी व्यक्ति विशेष की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की हमारी बिल्कुल भी मंशा नहीं है l ) सवाल : नेता जी बाहर विजय घोष और अंदर लगातार फोन की घंटी, बधाई हो, क्या कहना है आपका ? जवाब : देखिये बाहर जो विजय घोष आप सुन रहे हैं वो सब भाड़े पर आये हैं अपना पैसा खर्च करके कोई नहीं आता जय घोष करने और अंदर जो घंटी बज रही है यह बधाई देने वालों की नहीं है, बल्कि उन लोगों की है जिनसे हमने चुनाव में पैसा लिया था, वो लोग अपने काम और ब्याज समेत पैसे वापसी की लगातार याद दिलाये जा रहे हैं, जनता के पास तो हमारा नंबर ही नहीं होता है l अब समझे आप यही हमारा नेताओं वाला असली लोकतंत्र है l सवाल : नेता जी चुनाव होते रहते हैं लेकिन जनता का कुछ होता क्यों नहीं ? जवाब : जी जनाव, जनता का कुछ होगा भी कैसे l पहले चुनावी खर्चा लाख में था फिर लाखों में हुआ फिर करोड़ और अब करोड़ों मे