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Showing posts from February, 2020

आज का नेता - ऑफ रिकार्ड (व्यंग)

( आज का नेता ऑफ रिकार्ड क्या सोचता है और क्या बोलता है यह हमने एक पत्रकार और नेता के वार्तालाप (सवाल-जवाब) को व्यंग के माध्यम से बताने का प्रयास किया है l किसी भी बात का या शब्दों का किसी से मिलना महज़ संजोग हो सकता है या माना जायेगा l किसी व्यक्ति विशेष की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की हमारी बिल्कुल भी मंशा नहीं है l ) सवाल : नेता जी बाहर विजय घोष और अंदर लगातार फोन की घंटी, बधाई हो, क्या कहना है आपका ? जवाब : देखिये बाहर जो विजय घोष आप सुन रहे हैं वो सब भाड़े पर आये हैं अपना पैसा खर्च करके कोई नहीं आता जय घोष करने और अंदर जो घंटी बज रही है यह बधाई देने वालों की नहीं है, बल्कि उन लोगों की है जिनसे हमने चुनाव में पैसा लिया था, वो लोग अपने काम और ब्याज समेत पैसे वापसी की लगातार याद दिलाये जा रहे हैं, जनता के पास तो हमारा नंबर ही नहीं होता है l अब समझे आप यही हमारा नेताओं वाला असली लोकतंत्र है l सवाल : नेता जी चुनाव होते रहते हैं लेकिन जनता का कुछ होता क्यों नहीं ? जवाब : जी जनाव, जनता का कुछ होगा भी कैसे l पहले चुनावी खर्चा लाख में था फिर लाखों में हुआ फिर करोड़ और अब करोड़ों मे

आज का नेता - ऑन रिकार्ड (व्यंग)

( आज का नेता ऑन रिकार्ड क्या सोचता है और क्या बोलता है यह हमने एक पत्रकार और नेता के वार्तालाप (सवाल-जवाब) को व्यंग के माध्यम से बताने का प्रयास किया है l किसी भी बात का या शब्दों का किसी से मिलना महज़ संजोग हो सकता है या माना जायेगा l किसी व्यक्ति विशेष की भावनाओं को ठेस पहुँचाने की हमारी बिल्कुल भी मंशा नहीं है l ) सवाल : नेता जी बाहर विजय घोष और अंदर लगातार फोन की घंटी, बधाई हो, क्या कहना है आपका ? जवाब : देखिये यही तो लोकतंत्र की खूबी है, कि लोगों को जब लम्बे समय के बाद अपने पसंद की सरकार मिली है तो वे अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करने यहाँ भरी संख्या में पहुंचे हैं और जो किन्ही कारणों से नहीं आ सके वो फोन पर अपनी ख़ुशी का इज़हार लगातार कर रहे हैं l भाई ये जनता है, इसको पूरा हक़ है अपनी ख़ुशी ज़ाहिर करने का l देखिये इनको हम पर बहुत भरोसा है और ये सभी हमें बहुत प्यार करते हैं और मैं भी l सवाल : नेता जी चुनाव होते रहते हैं लेकिन जनता का कुछ होता क्यों नहीं ? जवाब : जी देखिये, जनता की उम्मीदें हर बार बढ़ जाती हैं इसलिए ऐसा लगता है कि कुछ हुआ ही नहीं l सरकार के आंकड़े उठा कर देख लीजिये सरकार क

ज्योतिष शक्ति

पहली बात यह कि मानव जीवन में बहुत कुछ पूर्व निर्धारित है और इसमें ज्यादा बदलाव संभव नहीं है । तभी तो कोई कितना भी प्रयास कर ले सब कुछ नहीं कर सकता जो वह सोचता या चाहता है । जो कुछ भी वह प्राप्त करता है वह अपने कर्मों के माध्यम से ही पाता है । दूसरी बात यह कि कर्म के साथ यदि वास्तु और मुहूर्त को मिला दिया जाय तो निश्चित रूप से कुछ ज्यादा पाया जा सकता है । यह वास्तु और मुहूर्त ज्योतिष के माध्यम से ही प्राप्त होता है । सदैव याद रखें कि कहते हैं कि यदि कोई कार्य सही समय पर या शुभ समय पर और एक सही दिशा में प्रारम्भ किया जाय तो उसकी सफलता की सम्भावना बढ़ जाती है । साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि भारतीय ज्योतिष के अनुसार मानव जीवन में अधिकतम सुःख 40% और न्यूनतम दुःख  60% निर्धारित है और इसमें परिवर्तन केवल कर्म एवं ज्योतिष के माध्यम से ही संभव है । आवश्यकता है मात्र एक ज्ञानी एवं अनुभवी ज्योतिषी की । आज इक्क

ज्योतिष - ज्योतिषी – जातक

ज्योतिष भारतीय प्राचीन ग्रंथों एवं शास्त्रों के अनुसार कुल 9 ग्रहों, 27 नक्षत्रों, 12 राशियों की आकाश गंगा में स्थिति एवं गति या चाल की गणना करने की जो पद्धति या विधि है वह ज्योतिष कहलाता है । इसके नियम बिलकुल अचूक हैं और आज हज़ारों वर्षों के बाद बह वही परिणाम दे रहे हैं । ज्योतिषी ज्योतिष की विधियों को जानने वाला या इन विधियों का प्रयोग करके जो व्यक्ति परिणाम देता है वह ज्योतिषी कहलाता है । ज्योतिष के अंतर्गत गणना करके परिणाम देने वाली अनेकों विधियां प्रचलित हैं । लेकिन भारत में जन्म कुंडली या प्रश्न कुंडली देखकर फलित या ज्योतिषीय परिणाम देना ही अधिक विश्वसनीय माना जाता है और है भी । इसके अनुसार जो व्यक्ति कुंडली के 12 भावों में 12 राशियों , 9 ग्रहों और 27 नक्षत्रों की जन्मकालीन स्थिति और वर्तमान स्थिति की गणना के साथ ही कुंडली में स्थित योग एवं वर्तमान दशा के अनुसार परिणाम देता या बताता है वह ज्योतिषी कहलाता है । आज विज्ञान के बाद परमात्मा और परमात्मा के बाद ज्योतिषी ही सबसे अधिक विश्वसनीय और पूज्यनीय होता है चाहे मज़बूरी में ही सही । ऐसा मेरा मानना है । जातक ज्योतिष विधि को

नेता नहीं अभिनेता

नेता नहीं अभिनेता है ये, नेता के चोले में अभिनेता है ये l जान लो इसको - पहचान लो इसको, हक़ीक़त नहीं छलावा है ये l तुम्हारे लिए नहीं - अपने लिए आया है ये, कुछ देने नहीं - बहुत कुछ लेने आया है ये l दुःख दे जाएगा - सुख ले जायेगा ये , क्योंकि नेता नहीं अभिनेता है ये l सोच इसकी निराली है-शैली इसकी मायावी है, छलना और छलावा इसकी प्रवृत्ति है l जो दिखता है-वो है नहीं ये, जो बोलता है वो करता नहीं ये l बातों में इसके आना नहीं, संग इसके जाना नहीं l साज़िश के साये में रहता है ये , साज़िश की खेती करता है ये l क्योंकि नेता नहीं अभिनेता है ये -छलावा है ये, समय रहते जान लो इसको-पहचान लो इसको l लेखक एवं प्रस्तुति सुभाष वर्मा Writer-Journalist-Social Activist www.LoktantraLive.in loktantralive@hotmail.com

सी.एल.सी.सी. (CLCC)

CLCC means Customized, Legalized, Centralized Corruption means a Corruption which made by some very limited persons for a specific Aim through Legalized way अर्थात विशेष प्रयोजन हेतु, वैधानिक रूप से, केंद्रीकृत (अतिसीमित) व्यक्तियों द्वारा किये गये भ्रष्टाचार (आर्थिक लाभ या व्यक्तिगत लाभ) को पकड़ना नामुमकिन नहीं तो बहुत मुश्किल ज़रूर है l और ऐसे केसों में जब तक मामला उजागर होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है या जब तक ऐसे मामलों का निपटारा होता है तब तक सम्बंधित व्यक्ति दूसरी दुनिया में जा चूका होता है l निश्चित रूप से अपवाद यहाँ भी होंगें l उदहारण स्वरुप यदि किसी को आर्थिक लाभ देना है तो सबसे पहले अतिसीमित लोगों के द्वारा आर्थिक लाभ देने की प्रक्रिया को क़ानूनी जामा पहनाया जाता है फिर उसको आर्थिक लाभ देने का काम किया जाता है l इसी प्रकार यदि किसी को व्यक्तिगत लाभ देना हो तो सबसे पहले अतिसीमित लोगों द्वारा व्यक्तिगत लाभ देने की प्रक्रिया को क़ानूनी जामा पहनाया जाता है फिर उसको व्यक्तिगत लाभ देने का काम किया जाता है l कहते हैं कि जहाँ विकास होगा वहां भ्रष्टाचार ज़रूर होगा, इससे इंकार

गाँधी के मायने

गाँधी का नाम ज़ेहन में आते ही हमें एक ऐसे व्यक्ति की छवि नज़र आती है जैसे " एक बूढ़ा व्यक्ति जो एक धोती पहने है साथ ही हाथ में एक डंडा है और आँखों पर एक गोल चश्मा है या कभी चरखे के साथ " l क्योंकि कई दशकों से यही छवि शासन एवं प्रशासन के द्वारा लोगों को दिखाई जा रही है l जिसको हम सभी मोहनदस करमचंद गाँधी या गाँधी जी के नाम से जानते हैं l इसके अलावा कोई अन्य छवि मैंने तो अपने जीवन काल में अभी तक नहीं देखी है l निश्चित रूप से यह सोच के साथ शोध का विषय भी होना चाहिए l गाँधी जी से सम्बंधित जो भी जानकारी मेरे पास है वो केवल स्कूली शिक्षा, प्रिंट मीडिया, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एवं आम लोगों से बातचीत के द्वारा ही प्राप्त हुई है l इसके अलावा मैंने गाँधी जी से सम्बंधित कोई भी साहित्य अभी तक नहीं पढ़ा है l हमें ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि आज भारत में लोकतंत्र के बाजार में (Democracy Market or in the Market of Democracy) राजनीतिक लोगों एवं राजनीतिक पार्टियों के लिए गाँधी जी महज़ एक अदद राजनीतिक उत्पाद (Political Product) भर रह गए हैं जो समय-समय पर बेचे जाते हैं, क्योंकि हम देखते ह

आज़ादी....मेरी नज़र में

जिस तरह सब्ज़ी बनाते समय जीरा, मेथी, प्याज, लहसुन, तेज़पत्ता, मिर्च आदि को पहले खूब भुना जाता है और सब्ज़ी तैयार होने पर गार्निशिंग के तौर पर इस्तेमाल हुई हरी धनियां, पुदीना, निम्बू आदि पकवान का सारा श्रेय ले जाते हैं उसी प्रकार देश की आज़ादी में जिन लोगों ने अपनी आहुती दी उनको किनारे कर कुछ मुट्ठी भर लोग अंततः आज़ादी का श्रेय ले बैठे और अमर हो गए और आहुती देने वालों को वालों को भारत रत्न तो दूर शहीद का दर्ज़ा भी आधिकारिक तौर पर नहीं मिला, यहाँ कुछ अपवाद हो सकता है लेकिन इसको बिल्कुल खारिज नहीं किया जा सकता है l देश को आज़ाद हुए 70 वर्ष हो चुके हैं और कहने को तो हम इक्कीसवीं सदी में आ गए हैं लेकिन बहुत कुछ हमें आज भी सुनने को मिल जाता है (जैसे : इससे बढ़िया तो अंग्रेज़ों का राज था, उनके समय कानून की इज़्ज़त थी, लोग कानून से डरते थे, वो प्रतिभा की कदर करते थे, सौ साल और उनको यहाँ रहना चाहिए था, आज का सिस्टम भी उन्ही का दिया हुआ है, अगर आज वो होते तो देश की हालत कुछ और ही होती इत्यादि ) जिसके बाद हम भी सोचने को मज़बूर हो जाते हैं कि आज़ादी की परिभाषा क्या होनी चाहिए ? अभी कौन सी आज़ादी हमें मिली

सिमटते रिश्ते

यदि आपकी उम्र कम से कम 30 वर्ष या उससे ऊपर है तो निश्चित रूप से आप रिश्तों के ऐसे संसार से सम्बन्ध रखते हैं जहाँ माँ, बाप, भाई, बहन, दादा, दादी, नाना, नानी, सास, ससुर, पति, पत्नी, मामा, मामी, जीजा, दीदी, फूफा, बुआ, मौसी, मौसा, चाचा, चाची, भैया, भाभी, देवरानी, जेठानी, देवर, ननद, भतीजा, भतीजी, भांजा, भांजी इत्यादि नाम के रिश्ते होते हैं l और यह कोई सदियों पुरानी बात नहीं है, मात्र दो दशक पहले कि बात है, लेकिन समय बदला और हम एक नए सामाजिक परिवेश का निर्माण करने लग गए l तर्क यह कि हम एक विकसित भारत का निर्माण करेंगें, भारत को विश्व गुरु बनायेंगें, भारत को विश्व शक्ति बनायेंगें इत्यादि और दूसरी तरफ हम अपनी हज़ारों लाखों साल पुरानी संस्कृत की दुहाई देना भी नहीं भूलते हैं l और आज़ादी के 72 वर्षों के बाद भी देश आज कहाँ खड़ा है यह किसी से छिपा नहीं है अर्थात प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं है l यानी हम 'धोबी का कुत्ता ना घर का ना घाट का' और 'करैला एवं नीम चढ़ा' नामक प्रचलित मुहावरों को चरितार्थ करने लग गए l इस विकसित, विश्व गुरु, विश्व शक्ति इत्यादि की आप-धापी में हमारे