देश बदल रहा है-II
"कविता" देश बदल रहा है -II बदलाव प्रकृति का नैसर्गिक नियम है … पुराणी परंपरा टूट रही है , नयी परंपरा बन रही है I राजनीति का स्थान , अब राज - नीति ने ले लिया है I पहले राज से नीति बनती थी , अब नीति से बनता राज है I जीत के तरीके बदल गए , जीत के मायने बदल गए I वाकई देश बदल रहा है , परिभाषाएं बदल रही है I सम्बन्ध के मायने बदल रहे है , नैतिकता के मायने बदल रहे है I नैतिकता जो राजनीति का कभी गहना थी , अब हारे का सहारा बन गयी है केवल I दलित जो कभी चरण वंदना करता था , आज उसकी भी चरण वंदना हो रही है I कंगाल भी दलित है और , करोड़ पति भी दलित है I निचले पायदान पर भी दलित है , और शिखर पर भी दलित है I दलित जो कभी शर्म का नाम था , आज स्टेटस सिंबल है दलित I कोई तो बताओ क्या है द...