देश बदल रहा है-I

 "कविता"      देश बदल रहा है-I

प्रधानमंत्री मंच पर रो रहा है,
बैंक कर्मी भी बिना आँसू रो रहा है,
नोटेबंदी की मारी जनता बिना आवाज़ कराह रही है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

नोटेबंदी में मरे लोगों के घर विलाप हो रहा है,
नोटेबंदी के कारण शव का संस्कार समय पर नहीं हो रहा,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

कश्मीर जल रहा है, शहीदों की संख्या बढ़ रही है,
कश्मीर नीति, पाक नीति फेल हो रही है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

अपनों एवं अपने परिवार का साथ छोड़ने वाले,
देश को साथ लेकर चलने की बात कर रहें हैं,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

दिल में कुछ और, ज़बान पर कुछ और,
मुँह में राम-बगल में छूरी, को चरितार्थ करनेवाले,
जनता को देश भक्ति की परिभाषा पढ़ा रहे हैं,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…!

मंहगाई, अपराध, बेरोज़गारी, आत्महत्या बढ़ रही है,
नौजवानों में असुरक्षा, कुंठा, गुस्सा बढ़ रहा है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

सरकार आँकड़ों में ही उलझी है,
आँकड़ों की ही दुहाई दे रही है,
जनता जीवन समर में ही उलझी है,
वो अपनी समस्याओं की ही दुहाई दे रही है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

सरकार अपना दुखड़ा रो रही है,
जनता अपना दुखड़ा रो रही है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

जीवन शैली का हनन हो रहा है,
अधिकारों का दमन हो रहा है,
जनता बोली हमें मत उलझाओ,
सरकार बोली हमें ना सुझाओ,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

मोबाइल, इंटरनेट, कारें, शेयर मार्केट, उँची इमारतें,
विकास के मानक बन गये हैं,
जनता हताश है, युवा परेशान है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

पुरानी ट्रेन चलती नहीं, बुलेट ट्रेन का प्रस्ताव है,
झोंपड़ी अभी भी आबाद है, स्मार्ट सिटी का प्रस्ताव है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

छोटे क़र्ज़ वालों पर सरकारी सिकंजा,
बड़े कर्ज़दार को सरकारी सहारा,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

क़र्ज़ में डूबी जनता आत्महत्या कर रही है,
आकंठ क़र्ज़ मे डूबा कार्पोरेट मौज़ कर रहा है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

किसान बदहाल है और जनता परेशान है,
व्यापारी मस्त है और नेता मस्त है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

विकास की नयी परिभाषा गढ़ी जा रही है,
पुनः सत्ता में आने का अटल विश्वास है,
इसलिए, उद्घाटन की नयी परम्परा बन रही है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

आँकड़ो, जुमलों, सपनों का बाज़ार गर्म है,
आम जनता त्रस्त है, आम जनता पस्त है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

रोटी, कपड़ा, मकान का नारा हुआ पुराना,
फिर आया ग़रीबी हटाओ-मंहगाई भागाओ का नारा,
अब आया विकास और देशप्रेम का नारा,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

ग़रीबी, भुखमरी, कालाधन, अपराध, भ्रष्टाचार, शिक्षा,
ये पुराने राजनैतिक उत्पाद हो गये हैं,
दलित, आरक्षण, शहीद, देशप्रेम, महिला सम्मान,
ये नये राजनैतिक उत्पाद गये हैं,
इन्हीं को जनता को बेचा जा रहा है,
और इन्हीं से जनता को खरीदा जा रहा है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

अंततः व्यवस्था में कोई फ़र्क नहीं आ रहा है,
और न ही आने की संभावना दिख रही है,
इसीलिए जनता पस्त है और नेता मस्त है,
सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है…..!

सरकार बोली मेरा देश बदल रहा है,
कोई तो बताए हमें कि,
कौन बदल रहा है, कैसे बदल रहा है, कैसा बदल रहा है,
मेरा देश बदल रहा है..! मेरा देश बदल रहा है..! 

# Subhash Verma

# Feedback at loktantralive@hotmail.com

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