देश बदल रहा है-II

"कविता"  देश बदल रहा है-II
             
बदलाव प्रकृति का नैसर्गिक नियम है
पुराणी परंपरा टूट रही है,
नयी परंपरा बन रही है I
राजनीति का स्थान,
अब राज-नीति ने ले लिया है I

पहले राज से नीति बनती थी,
अब नीति  से बनता राज है I
जीत के तरीके बदल गए,
जीत के मायने बदल गए I

वाकई देश बदल रहा है,
परिभाषाएं बदल रही है I
सम्बन्ध के मायने बदल रहे है,
नैतिकता के मायने बदल रहे है I

नैतिकता जो राजनीति का कभी गहना थी,
अब हारे का सहारा बन गयी है केवल I
दलित जो कभी चरण वंदना करता था,
आज उसकी भी चरण वंदना हो रही है I

कंगाल भी दलित है और,
करोड़ पति भी दलित है I
निचले पायदान पर भी दलित है,
और शिखर पर भी दलित है I

दलित जो कभी शर्म का नाम था,
आज स्टेटस सिंबल है दलित I
कोई तो बताओ क्या है दलित,     
क्या है दलित की परिभाषा I

क्या है दलित के मायने,
वाकई देश बदल रहा है ..?
लेकिन कैसा बदल रहा है..?

# Subhash Verma

# Feedback at loktantralive@hotmail.com


Comments

Popular posts from this blog

कुछ नया करते हैं ...?

थोड़ा इंतज़ार कर

आज का नेता - ऑन रिकार्ड (व्यंग)