सरकारी अनुदान क्यों..?
"सामाजिक" सरकारी अनुदान क्यों..?
यह लेख उन सभी एन.जी.ओ. और उनसे सम्बंधित लोगों के लिए है जो आजतक सरकारी अनुदान
से वंचित हैं या अनुदान के चक्कर में ठगी का शिकार हो चुके है साथ ही जो एन.जी.ओ. की
निरंतर गिरती गरिमा को पुनर्स्थापित करना चाहते हैं ।
एन.जी.ओ, नेता, मीडिया, अध्यापक, डॉक्टर और बाबा लोग, इन सब में काफी
समानता है । आज़ादी के बाद देश में ये सभी सबसे अधिक
सम्मान की दृष्टि से देखे जाते
थे । जैसे
जैसे समय बीतता
गया इनका स्तर
गिरता गया और आज आज़ादी के 70 वर्षों के बाद भी देश में इनकी
क्या स्थिति है यह किसी से छुपा नहीं है । इनको किन भिन्न भिन्न शब्दों से अलंकृत किया
जाता है वह जग ज़ाहिर है ।
आज हम यहाँ एन.जी.ओ. की चर्चा
करेंगें । आज देश में कुल कितने एन.जी.ओ, (सोसाइटी, ट्रस्ट और कंपनी एक्ट के अंतर्गत) हैं ये किसी को पता नहीं, न शासन
को और न ही प्रशासन को । एक अनुमान के मुताबिक वर्तमान में लगभग
इनकी संख्या 22 लाख से ज्यादा है ।
देखा यह गया है कि जिन एन.जी.ओ. का सम्बन्ध प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शासन या प्रशासन में बैठे उच्च
पदस्थ लोगों से है वही लोग सरकारी अनुदान या योजनाओं का लाभ ले पाते हैं । अपवाद सभी जगह होता है तो निश्चित रूप से यहाँ भी होंगें ।
यहाँ ध्यान
देने वाली बात यह है कि देश में लाखों
कि संख्या में ऐसी एन.जी.ओ. हैं जिनका सम्बन्ध शासन
या प्रशासन में बैठे लोगों से नहीं है या ताल मेल नहीं
है ऐसी सूरत
में इनको सरकार
से न ही कोई फण्ड मिल पता है और न ही कोई प्रोजेक्ट, उल्टा ये लोग फण्ड या प्रोजेक्ट के नाम पर ठगी के शिकार होते रहते
हैं और अपनी
हैसियत के अनुसार पांच हज़ार से लेकर पांच लाख तक की रकम भी ठगों के हवाले कर देते
हैं । समय समय पर एन.जी.ओ. में भ्रष्टाचार की ख़बरें
भी आती रहती
है । कुछ समय पहले सरकार
ने काफी सारी
एन.जी.ओ. की मान्यता भी रद्द कर दी है ।
अतः मेरा उन सभी एन.जी.ओ. के संचालकों (विशेषकर जिनका सम्बन्ध शासन या प्रशासन में बैठे लोगों
से नहीं है या ताल मेल नहीं है) से अनुरोध है की सरकार से किसी
भी प्रकार का फण्ड या प्रोजेक्ट लेने का प्रयास न करें क्योंकि जब आपने एन.जी.ओ. बनाया था तब आपने सरकार से यह तो नहीं पूछा
था की फण्ड
या प्रोजेक्ट दोगे या नहीं, यदि ऐसा है तो आपको सरकार को कोसने का कोई हक़ नहीं बनता
। आप
सभी
ने
देखा या सुना
होगा
की
बड़े
बड़े
एन.जी.ओ.
को
सरकारी
प्रोजेक्ट
या
फण्ड
आराम
से
मिल
जाते
हैं
जिनको आप
लोग
मदर
एन.जी.ओ.
के
नाम
से
भी
जानते
हैं
।
यहाँ
ध्यान
देने
वाली
बात
ये
है
कि
सरकारी
स्कीमों
का
लाभ
सबको
नहीं
मिल
पाता
और
रसूक
वाले
अपना
काम
कर
जाते
है
।
यह
पूरी
तरह
व्यवस्था
का
दोष
है,
जिसका
बदलना फिलहाल
संभव
नहीं
है । बेहतर
है
की
आप
लोग
अपना
पैसा
और
सामर्थ्य
लगाकर
स्वयं
का
प्रोजेक्ट
तैयार
करें।
विश्वास
करिये
यदि
आपकी
नियत
साफ़
है
तो
आप
अपने
मिशन
में
ज़रूर
कामयाब
होंगें
। नहीं
तो फण्ड और प्रोजेक्ट के नाम पर ठगी यह सिलसिला ज़ारी रहेगा ।
और सरकार को हमारा सुझाव है कि एन.जी.ओ. में
फैले भ्रष्टाचार को ख़त्म करने के लिए सबसे पहले सभी प्रकार के एन.जी.ओ. को सरकारी फण्ड
और प्रोजेक्ट देने पर तुरंत स्थाई रूप से रोक लगा देनी चाहिए क्योंकि जब सरकार के पास
समाज कल्याण मंत्रालय, विभाग और बहुत सारे स्टाफ हैं तो ऐसे में एन.जी.ओ. को फण्ड और
प्रोजेक्ट किसलिए ? सरकार को ये काम खुद करना चाहिए लेकिन इसके लिए सरकारी इच्छा शक्ति
भी ज़रूरी है जो कहीं दिखती नहीं है । न ही कोई संभावना है ।
अंततः आप सभी से मेरा अनुरोध है कि आप भीड़ का हिस्सा न
बनें बल्कि अपनी अलग पहचान बनायें और यदि आप एन.जी.ओ. एवं इससे सम्बंधित लोगों की जो
छबी आज समाज में बन गयी हो उसको बदलना चाहते हैं तो उपरोक्त पर विचार ज़रूर करें ।
# Subhash Verma
#Feedback at loktantralive@hotmail.com
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