समय की पुकार-व्यवस्था में बदलाव

इस देश का कुछ नहीं हो सकता या इस देश में कुछ भी हो सकता है ?
सामान्यतः ये वाक्य हम सभी आम जनता से सुनते रहते हैं l निश्चित तौर पर एक तरफ इसमें निराशा दिखती है तो दूसरी तरफ आशा की संभावना भी नज़र आती है l लेकिन इन दोनों का सम्बन्ध देश की व्यवस्था एवं व्यवस्था कारकों से है l और व्यवस्था की समस्या निश्चित तौर पर भारतीय शासकीय व्यवस्था तंत्र एवं जन प्रतिनिधियों से जुडी हुई है l

इस सम्बन्ध में मैंने लगभग समाज के हर वर्ग से बात की और परिणाम स्वरुप जो विचार एवं सुझाव प्राप्त हुए वह यहाँ निम्न बिंदुओं में प्रस्तुत है जो निश्चित रूप से गहन विचार एवं शोध के लिए प्रेरित करते हैं :- 1. किसी भी विधायक या सांसद को केवल उसके कार्यकाल में ही वेतन, भत्ता इत्यादि सुविधाएँ मिलनी चाहिए l 2. किसी भी पूर्व विधायक या पूर्व सांसद को कोई भी पेंशन या लाभ नहीं दिया जाना चाहिए l विशेष परिस्तिथियों को छोड़ कर l 3. गुप्तचर संस्थाओं के सुझाव के अनुसार ही किसी भी विधायक या सांसद को सुरक्षा दी जानी चाहिए l 4. विधान सभा या लोकसभा में मंत्री पद दिए जाने के मामले में मंत्रालय से सम्बंधित शिक्षित या सम्बंधित अनुभवी व्यक्ति को ही प्राथमिकता दी जानी चाहिए एवं विशेष परिस्तिथियों में ही किसी अन्य विकल्प को अपनाया जाना चाहिए l 5. लोकसभा में प्रधान मंत्री को सभी राजनितिक दलों को प्राप्त सीटों के प्रतिशत के अनुसार ही मंत्रालयों का बंटवारा करना चाहिए एवं सभी निर्दलीय को एक पार्टी माना जाना चाहिए अर्थात राष्ट्रीय सरकार की स्थापना एवं संचालन जो कि पूर्णकालिक सरकार को सुनिश्चित करेगा l 6. विधान सभा में मुख्यमंत्री को सभी राजनितिक दलों को प्राप्त सीटों के प्रतिशत के अनुसार ही मंत्रालयों का बंटवारा करना चाहिए एवं सभी निर्दलीय को एक पार्टी माना जाना चाहिए अर्थात प्रदेशीय सरकार की स्थापना एवं संचालन जो कि पूर्णकालिक सरकार को सुनिश्चित करेगा l 7. विधान सभा एवं लोकसभा में नीतिगत फैसले बजट सत्र के दौरान ही लेने चाहिए विशेष परिस्तिथियों को छोड़ कर न कि पूरे साल ऐसा करते रहना चाहिए l 8. विधायकों, सांसदों, शासन प्रमुख एवं शासन को स्वायत्ता प्राप्त संस्थाओं की गरिमा को हर संभव बचाना चाहिए l 9. सभी जन प्रतिनिधियों को मर्यादित आचरण एवं संयमित भाषा के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए l 10. विधायक, सांसद एवं शासन प्रमुख को प्रशासकीय कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए l 11. प्रत्येक विधायक, सांसद एवं शासन प्रमुख की ज़िम्मेदारी तय होनी चाहिए l 12. कोई भी जनप्रतिनिधि अथवा शासन का कोई भी व्यक्ति यदि किसी भी भ्रष्टाचार या शोषण (आर्थिक, शारीरिक, मानसिक) में लिप्त पाया जाता है तो उसको देश द्रोह की श्रेणी में रखा जाना चाहिए l निश्चित रूप से उपरोक्त पर विवाद एवं वैचारिक मतभेद को सकते हैं अतः इसमें निःसंदेह सुधार की आवश्यकता है l अतः आप सभी प्रबुद्ध पाठकों से निवेदन है कि आप अपना स्पष्ट सुझाव एवं प्रतिक्रिया हमें निश्चित रूप से प्रेषित करें l

वैसे तो देश में जो राजनीतिक तंत्र विकसित हो गया है उसमें तो उपरोक्त पर सकारात्मक परिणामों की अपेक्षा करना अमावस्या की रात में पूर्णिमा के चाँद ढूंढने जैसा है l शायद इसीलिए कहते हैं कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता या इस देश में कुछ भी हो सकता है l

उपरोक्त पर विचार प्रार्थनीय है l अग्रिम धन्यवाद ! जय हिन्द ....!

लेखक एवं प्रस्तुति सुभाष वर्मा Writer-Journalist-Social Activist www.LoktantraLive.in loktantralive@hotmail.com

Comments

Popular posts from this blog

ज़िन्दगी का मतलब

आज का नेता - ऑन रिकार्ड (व्यंग)

कुछ नया करते हैं ...?