चुनावी राग की मार
"कविता" चुनावी राग की मार
चुनावी राग की मार है यारों,
ये सुनती नहीं केवल धुनती है I
सुना था बचपन में,
जिसको चुनते हैं वही धुनते है I
सोचता था बचपन में कि,
धुनना ही है तो चुनते ही क्यों है I
बड़ा हुआ तो पता चला कि,
ये परंपरा तो सदियों पुरानी है I
चुनते हैं तो भी धुने जाते हैं,
नहीं चुनते है तो भी धुने जाते हैं I
सच है चोली दामन का साथ है,
चुनने का और धूनने का I
कहीं चुनना मज़बूरी भी है तो,
चुनना कहीं ज़रूरी भी है I
धुनाई दोनों सूरत में है,
धुनाई हर हाल में है I
चुनते रहना और धुनते रहना,
यही हमारी नियति है I
स्कूल, हॉस्पिटल, चुना तो इसने भी
धुना,
नौकरी, मालिक चुना तो इसने भी धुना I
सामान, कंपनी, चुना तो इसने भी धुना,
नेता, सरकार चुना तो इसने भी धुना I
सही कहा है किसी ने,
हम चुनते रहेंगें वो धूनते रहेंगें I
चुनावी राग की मार है यारों,
ये सुनती नहीं केवल धुनती है..!
# Subhash Verma
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