अपराध मुक्त भारत-I

“सामाजिक” अपराध मुक्त भारत-I

अपराध मुक्त भारत के लिए थोक के भाव क़ानूनों के साथ सरकार कितनी संवेदनशील है, इसी बिंदु पर प्रकाश डालने का प्रयास यहाँ किया गया है l

देश में सभी प्रकार के अपराधों के रोकथाम के लिए बहुत सारे क़ानून हैं तथा समय-समय पर नये क़ानून भी आते रहते हैं तथा पुराने क़ानूनों में संशोधन भी होता रहता है लेकिन इसके बावजूद अपराधों मे कमी नहीं हो पा रही है उल्टा इसमें व्यस्क के साथ-साथ किशोर एवं नाबालिग भी शामिल होते जा रहें हैं l यह सोच का नहीं शोध का विषय है l

अपराधिक मानसिकता वाला व्यक्ति, अपराध करने के नए - नए हथकंडे अपनाते रहते हैं और कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाय तो वो अपने मंसूबे में हमेशा कामयाब हो जाते हैं । जबकि आम आदमी सामान्यतः न तो सुरक्षा के नए नए उपायों पर ही ध्यान देता है न ही जागरूकता के प्रति सचेत ही रहता है, नतीजा सबके सामने है अपराध बढ़ते ही जा रहे हैं ।

हमारे देश में शासन एवं प्रशासन की प्रवृत्ति बहुत कुछ खोने के बाद कुछ सीखने एवं करने की है l जिसका खामियाज़ा देश भुगतता आ रहा है और आगे भी भुगतता रहेगा क्योंकि सरकार की काम करने की प्रवृत्ति ही ऐसी बनी हुई है l

सामान्यतः यह देखा गया है की जनसेवा या उपभोक्ता सेवा जैसे : LPG Gas, Phone, Mobile, Internet, Bank, Court, Police, Local Body, Loan, Postal, Courier, Insurance, Survey, Paper Verification, Electricity, Water, Election, Tax, Food Supply etc. से जुड़े लोग जो की सामान्यतः केंद्रिया कर्मचारी, राज्य कर्मचारी, किसी संस्था या किसी कम्पनी के कर्मचारी या प्रतिनिधि होते हैं, और ये सभी लोग सामान्यतः दिन के समय ही संबंधित घरों में जाते हैं l और यह पाया या देखा गया है की ये सभी लोग (कुछ अपवादों को छोड़कर) बिना विभागीय वर्दी या पहचान पत्र के ही होते हैं l

यहाँ विशेष बात यह है कि दिन के समय घरों में बच्चे, महिलाएँ एवं बुजुर्ग ही रहते हैं, ऐसे में अपराधिक मानसिकता वाला कोई भी व्यक्ति उपरोक्त व्यक्ति के रूप में आसानी से इन लोगों को अपना शिकार बना सकता है l

ऐसे में यदि वे सभी व्यक्ति जो इसप्रकार की सेवा में लगे हैं, वे जब भी किसी के घर जाएँ तब पूरी तरह अपनी विभागीय वर्दी में तथा गले में अपना फोटो वाला विभागीय पहचान पत्र धारण करके ही जाएँ l इस कार्यवाही से स्थिति काफ़ी सुखद हो सकती है l लेकिन इसको केवल प्रशासन या शासन ही सुनिश्चित कर सकता है l

जनहित में अबिलम्भ पूरे देश में यह सुनिश्चित हो सके इसलिए हमने इस संबंध में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी को 12/03/2014 को एक पत्र लिखा, कोई जबाब नहीं आया तब पुनः इसी सन्दर्भ में वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को 09/06/2014 एक दूसरा पत्र हमने लिखा l
तत्पश्चात 08/05/2015 को दिल्ली पुलिस का एक पत्र मिला की समय समय पर निरीक्षण कर इसको सुनिश्चित किया जाएगा l लेकिन धरातल पर परिणाम शून्य ही रहा l कुछ न होता देख हमने पुनः 20/06/2015 को वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को तीसरा पत्र लिखकर स्थिति से अवगत कराया, लेकिन दुर्भाग्य से कोई उत्तर नहीं मिला l

जनहित के इस मामले में सरकार कितनी संवेदनशील है यह हमें मालूम चल चुका था l अंततः जनहित में हमने उम्मीद की आखरी मंज़िल माननीय सर्वोच्च न्यायालय का रुख़ किया और 03/05/2016 (Diary Number : 16210/2016) को माननीय मुख्य न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, नई दिल्ली को पूरी स्थिति से अवगत कराते हुए एक पत्र लिखा जिसमें अनुरोध किया कि जनहित में सरकार को ज़रूरी निर्देश दें l

दुर्भाग्यवश 01/06/2016 को कुछ तकनीकी कारणों से माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने हमारे पत्र पर किसी भी कार्यवाही करने में असमर्थता ज़ाहिर कर दी l इसकी जानकारी भी मुझे इंटरनेट के माध्यम से ही मिली थी l मेरे लिए यह अप्रत्याशित था l

मेरा अनुभव कुछ इस प्रकार रहा कि यदि आप को अँग्रेज़ी नहीं आती / आप को कंप्यूटर नहीं आता / आप एक अच्छा वकील नहीं रख सकते तो आप को माननीय सर्वोच्च न्यायालय से न्याय की आशा बिल्कुल नहीं रखनी चाहिए l

12/03/2014 को प्रारंभ हुआ अपराध मुक्त भारत के लिए हमारा यह छोटा सा प्रयास का जनहित का यह मुद्दा बिना किसी अंजाम के लगभग 30 माह बाद दफ़न हो गया l

जनहित के इस प्रकार के मुद्दों के लिए हमें और क्या करना चाहिए था कृपया पाठक ज़रूर बताएँ l

किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया का स्वागत है l

# Subhash Verma

# Feedback at  loktantralive@hotmail.com

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