अवैध निर्माण - अवैध कब्जा का सच
"सामाजिक" अवैध निर्माण-अवैध कब्जा का सच
अवैध निर्माण-अवैध कब्जा आज पूरे देश की एक आम समस्या है l क्या है कारण ? क्या है निवारण ? कौन लोग हैं इसके ज़िम्मेदार ? क्या इससे मुक्ति संभव है ?
आज पूरे देश में चाहे वह गाँव, शहर, महानगर, राजधानी, बाजार, पार्किंग, फूटपाथ, सोसाइटी के फ्लैट या विकास प्राधिकरण के फ्लैट हों, हर जगह आपको अवैध निर्माण-अवैध कब्जा देखने को मिल जाएगा l यहाँ तक की धार्मिक स्थल भी इससे अछूते नहीं हैं lयह आज पूरे देश की एक आम समस्या है l क्या है कारण ? क्या है निवारण ? कौन लोग हैं इसके ज़िम्मेदार ? क्या इससे मुक्ति संभव है ?
कहते हैं कि जहाँ लालच को शासन एवं प्रशासन का समर्थन मिल जाय वहाँ क़ानून का डर ख़त्म हो जाता है तो ऐसे में अवैध निर्माण-अवैध कब्ज़े को कैसे रोका जा सकता है l
किसी भी व्यक्ति को जब प्रशासन के प्रतिनिधि के रूप में उस एरिया का पुलिस बीट इंचार्ज एवं उस एरिया का जूनियर इंजिनियर और शासन के प्रतिनिधि के रूप में उस एरिया का निगम पार्षद का सहयोग या समर्थन मिल जाता है तो उसके अंदर क़ानून का डर ख़त्म हो जाता है और वह अवैध निर्माण या अवैध कब्ज़े को उसके अंजाम तक पहुँचा देता है l
अवैध निर्माण-अवैध कब्जा होने से सिर्फ़ नुकसान ही नुकसान है जैसे इस के कारण ट्रैफिक जाम तो आम बात है जिसके कारण समय पर हॉस्पिटल न पहुँच पाने के कारण मौत भी हो जाती है, ईंधन की बर्बादी, प्रदूषण, समय की बर्बादी, एरिया का सुंदरीकरण प्रभावित होता है, आर्किटेक्ट की मेहनत धूल चाटती नज़र आती है, टाउन प्लानार की सारी स्कीम फैल हो जाती है l
अवैध निर्माण के कारण निर्माणाधीन बिल्डिंग को धराशाही होने की खबर तो अक्सर मीडीया में आती रहती है और उसमें बेगुनाह लोगों की जान भी जाती रहती है l निश्चित रूप से इन मौतों का ज़िम्मेदार भी यही चार लोग होते हैं लेकिन यदि कुछ अपवादों को छ्चोड़ दिया जाय तो किसी का कुछ भी नहीं होता है l यह इस देश में दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति एवं विडंबना नहीं तो और क्या है l विशेष बात यह है की यहाँ प्रभावित होने वाले मजबूर और प्रभावित करने वाले मजबूत लोग होते हैं l
कारण केवल वही चार लोग (लाभार्थी व्यक्ति, उस एरिया का पुलिस बीट इंचार्ज, उस एरिया का जूनियर इंजिनियर और शासन के प्रतिनिधि के रूप में उस एरिया का निगम पार्षद) हैं l
यदि केवल इन चारों को इनकी कार्य अवधि के दौरान किसी भी अवैध निर्माण या अवैध कब्जा होने का पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराया जाय या दोषी माना जाय और एक लंबी सश्रम कारावास और मोटा जुर्माना सबको समान रूप से लगाया जाय तभी इस से मुक्ति संभव है l
लेकिन यह संभव ही नही है l क्योंकि यह काम तो केवल शासन एवं प्रशासन ही कर सकते हैं और वो भला अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी क्यूँ मारने लगे ?
कहने को तो संबिधान में अवैध निर्माण एवं अवैध कब्जा रोकने को बहूत सारे क़ानून हैं, लेकिन इनका कितना असर है यह सर्वविदित है l कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाय तो इन क़ानूनों के पालन में शासन एवं प्रशासन कितना तत्पर रहता है यह सर्वविदित है l
अर्थात् अवैध निर्माण एवं अवैध कब्जा के मामलों में सीधे सीधे शासन एवं प्रशासन की इच्छाशक्ति का अभाव या अनिक्छा इसका मूल कारण है l आज़ादी के 70वें वर्ष में हम नैतिक स्तर पर कहाँ जा रहें हैं यह सोच का नहीं शोध का विषय होना चाहिए l
केवल चार व्यक्ति ही मूल रूप से दोषी हैं और इन चारों (लाभार्थी व्यक्ति, उस एरिया का पुलिस बीट इंचार्ज, उस एरिया का जूनियर इंजिनियर और शासन के प्रतिनिधि के रूप में उस एरिया का निगम पार्षद) व्यक्तियों को सामूहिक रूप से एक लंबी सश्रम कारावास और मोटा जुर्माना ही इसका एकमात्र निवारण है l
आज देश में जो राजनीतिक परिदृश्य एवं जो चुनावी सिस्टम विकसित हो गया है उसमें शासन एवं प्रशासन से ऐसी अपेक्च्छा रखना अमावस की रात में पूर्णिमा का चाँद ढूँढने के बराबर है l
# "अवैध निर्माण-अवैध कब्जा का सच"
# "डिफेंडर" (DEFENDER ) हिंदी मासिक पत्रिका नवंबर 2016 का अंक
अवैध निर्माण-अवैध कब्जा आज पूरे देश की एक आम समस्या है l क्या है कारण ? क्या है निवारण ? कौन लोग हैं इसके ज़िम्मेदार ? क्या इससे मुक्ति संभव है ?
आज पूरे देश में चाहे वह गाँव, शहर, महानगर, राजधानी, बाजार, पार्किंग, फूटपाथ, सोसाइटी के फ्लैट या विकास प्राधिकरण के फ्लैट हों, हर जगह आपको अवैध निर्माण-अवैध कब्जा देखने को मिल जाएगा l यहाँ तक की धार्मिक स्थल भी इससे अछूते नहीं हैं lयह आज पूरे देश की एक आम समस्या है l क्या है कारण ? क्या है निवारण ? कौन लोग हैं इसके ज़िम्मेदार ? क्या इससे मुक्ति संभव है ?
कहते हैं कि जहाँ लालच को शासन एवं प्रशासन का समर्थन मिल जाय वहाँ क़ानून का डर ख़त्म हो जाता है तो ऐसे में अवैध निर्माण-अवैध कब्ज़े को कैसे रोका जा सकता है l
किसी भी व्यक्ति को जब प्रशासन के प्रतिनिधि के रूप में उस एरिया का पुलिस बीट इंचार्ज एवं उस एरिया का जूनियर इंजिनियर और शासन के प्रतिनिधि के रूप में उस एरिया का निगम पार्षद का सहयोग या समर्थन मिल जाता है तो उसके अंदर क़ानून का डर ख़त्म हो जाता है और वह अवैध निर्माण या अवैध कब्ज़े को उसके अंजाम तक पहुँचा देता है l
अवैध निर्माण-अवैध कब्जा होने से सिर्फ़ नुकसान ही नुकसान है जैसे इस के कारण ट्रैफिक जाम तो आम बात है जिसके कारण समय पर हॉस्पिटल न पहुँच पाने के कारण मौत भी हो जाती है, ईंधन की बर्बादी, प्रदूषण, समय की बर्बादी, एरिया का सुंदरीकरण प्रभावित होता है, आर्किटेक्ट की मेहनत धूल चाटती नज़र आती है, टाउन प्लानार की सारी स्कीम फैल हो जाती है l
अवैध निर्माण के कारण निर्माणाधीन बिल्डिंग को धराशाही होने की खबर तो अक्सर मीडीया में आती रहती है और उसमें बेगुनाह लोगों की जान भी जाती रहती है l निश्चित रूप से इन मौतों का ज़िम्मेदार भी यही चार लोग होते हैं लेकिन यदि कुछ अपवादों को छ्चोड़ दिया जाय तो किसी का कुछ भी नहीं होता है l यह इस देश में दुर्भाग्य पूर्ण स्थिति एवं विडंबना नहीं तो और क्या है l विशेष बात यह है की यहाँ प्रभावित होने वाले मजबूर और प्रभावित करने वाले मजबूत लोग होते हैं l
कारण केवल वही चार लोग (लाभार्थी व्यक्ति, उस एरिया का पुलिस बीट इंचार्ज, उस एरिया का जूनियर इंजिनियर और शासन के प्रतिनिधि के रूप में उस एरिया का निगम पार्षद) हैं l
यदि केवल इन चारों को इनकी कार्य अवधि के दौरान किसी भी अवैध निर्माण या अवैध कब्जा होने का पूरी तरह ज़िम्मेदार ठहराया जाय या दोषी माना जाय और एक लंबी सश्रम कारावास और मोटा जुर्माना सबको समान रूप से लगाया जाय तभी इस से मुक्ति संभव है l
लेकिन यह संभव ही नही है l क्योंकि यह काम तो केवल शासन एवं प्रशासन ही कर सकते हैं और वो भला अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी क्यूँ मारने लगे ?
कहने को तो संबिधान में अवैध निर्माण एवं अवैध कब्जा रोकने को बहूत सारे क़ानून हैं, लेकिन इनका कितना असर है यह सर्वविदित है l कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाय तो इन क़ानूनों के पालन में शासन एवं प्रशासन कितना तत्पर रहता है यह सर्वविदित है l
अर्थात् अवैध निर्माण एवं अवैध कब्जा के मामलों में सीधे सीधे शासन एवं प्रशासन की इच्छाशक्ति का अभाव या अनिक्छा इसका मूल कारण है l आज़ादी के 70वें वर्ष में हम नैतिक स्तर पर कहाँ जा रहें हैं यह सोच का नहीं शोध का विषय होना चाहिए l
केवल चार व्यक्ति ही मूल रूप से दोषी हैं और इन चारों (लाभार्थी व्यक्ति, उस एरिया का पुलिस बीट इंचार्ज, उस एरिया का जूनियर इंजिनियर और शासन के प्रतिनिधि के रूप में उस एरिया का निगम पार्षद) व्यक्तियों को सामूहिक रूप से एक लंबी सश्रम कारावास और मोटा जुर्माना ही इसका एकमात्र निवारण है l
आज देश में जो राजनीतिक परिदृश्य एवं जो चुनावी सिस्टम विकसित हो गया है उसमें शासन एवं प्रशासन से ऐसी अपेक्च्छा रखना अमावस की रात में पूर्णिमा का चाँद ढूँढने के बराबर है l
# Subhash Verma
# Feedback at loktantralive@hotmail.com# "अवैध निर्माण-अवैध कब्जा का सच"
# "डिफेंडर" (DEFENDER ) हिंदी मासिक पत्रिका नवंबर 2016 का अंक
Comments
Post a Comment