जमीन का आदमी
"कविता" जमीन का आदमी
मैं ज़मीन का आदमी हूँ,
ज़मीन पर ही जीना चाहता हूँ,
ज़मीन पर ही मरना चाहता हूँ,
ना मैं कवि हूँ ना मैं शायर हूँ,
ना मुझे बातें आती हैं ना ज़ुमले आते हैं,
ना मेरे पास हवा है ना बाज़ी है,
इसलिए मैं हवा बाज़ी नहीं करता हूँ,
ना मेरे पास हवा है ना ही किला है,
इसलिए मैं हवाई किले नहीं बनाता हूँ,
ना मेरे पास झूठ है ना सपने हैं,
इसलिए मैं झूठे सपने नहीं बेचता हूँ,
प्रभु की कृपा हुई,
तो चन्द लाइनें लिख बैठा,
सबक ले इतिहासों से,
मत खेल अंगारों से,
मत खेल मज़दूरों से -मज़लूमों से,
ख़ौफ़ खा बददुआवों से,
डर मत दर्ज़ होगा इतिहास में तेरा भी नाम,
राम सरीखा होगा या रावण सरीखा,
गाँधी सरीखा या गोडसे सरीखा,
सुनहले अक्षरों में होगा या काले अक्षरों में,
ये सोचना तेरा है काम… तेरा है काम…!
मैं ज़मीन का आदमी हूँ,
ज़मीन पर ही जीना चाहता हूँ…
ज़मीन पर ही मरना चाहता हूँ,
मैं ज़मीन का आदमी हूँ………….!
# Subhash Verma
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