दिल्ली की मुस्कान

''कविता''        दिल्ली की मुस्कान

ये दिल्ली की मुस्कान है यारों,
ये सब कुछ समेत लेती है,
जब देश का कोई कोना रोता है,
तब, दिल्ली मंद-मंद मुस्करती है,
जब देश का कोई कोना विपदा में होता है,
तो, दिल्ली में गर्माहट जाती है,
जब देश का कोई कोना दैविक विपदा का में होता है,
तब, दिल्ली आट्टाहास लगती है,
जब देश का कोई कोना मातम में डूबता है,
तब, दिल्ली शतरांज़ की बाज़ी बीछाती है,
जब देश का कोई कोना दंगाग्रस्त होता है,
तब, दिल्ली में हलचल बढ़ ज़ाती है,
जब देश का कोई कोना जल रहा होता है,
तब, दिल्ली अपना हाथ सेंकती है,
जब देश में गमी होती है तो,
तब, दिल्ली में मुस्कान होती है,
ये दिल्ली की मुस्कान है यारों,
ये सब कुछ समेत लेती है l
बड़ी ज़ालिम है ये, बड़ी कातिल है ये,
गम, दर्द, आँसू इसको भाते हैं,
तरक्की और खुशी इसकी मज़बूरी है,
ऩफा-नुकसान का हिसाब ये खूब समझती है,
ये दिल्ली की मुस्कान है यारों,
ये सब कुछ समेत लेती है l
(यहाँ दिल्ली का तात्पर्य सियासत या सियासत से संबंधित लोगों से है)

Subhash Verma
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